Madhu varma

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लेखनी कविता -सर्कस का जोकर - बालस्वरूप राही

सर्कस का जोकर / बालस्वरूप राही


हंस कर कभी कभी रो कर,
खूब हँसता है जोकर।

रंग-बिरंगा सूट पहन,
ढीले-ढाले बूट पहन,
उछल-उछल खाता ठोकर।

ऐसा ढोंग रचता है।
जैसे सब कुछ आता है,
जब कुछ करने जाता है
गिरता उलट-पलट हो कर।

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