लेखनी कविता -सर्कस का जोकर - बालस्वरूप राही
सर्कस का जोकर / बालस्वरूप राही
हंस कर कभी कभी रो कर,
खूब हँसता है जोकर।
रंग-बिरंगा सूट पहन,
ढीले-ढाले बूट पहन,
उछल-उछल खाता ठोकर।
ऐसा ढोंग रचता है।
जैसे सब कुछ आता है,
जब कुछ करने जाता है
गिरता उलट-पलट हो कर।